वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
20 जुलाई 2019
अद्वैत बोधस्थल ,ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 66)
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना |
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ||
भावार्थः
न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्भि नहीं होती
और उस अयुक्त्त मनुष्य के अन्त:करण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन
मनुष्यों को शान्ति नहीं मिलती और शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है ।।
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हम भावनाओं में क्यों बह जाते हैं?
भावनाओं में बहने से कैसे बचें?
क्या एक निष्ठ रहना संभव भी है'?
संगीत: मिलिंद दाते